हिन्दू समाज में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन प्रभु नारायण की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। प्रत्येक महीने में दो बार एकादशी का व्रत पड़ता है एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। मान्यताओं के अनुसार, जो भी जातक एकादशी का व्रत रख विष्णु जी और मां लक्ष्मी की उपासना करता है उसका जीवन खुशहाल और समृद्ध बन जाता है। साथ ही घर में सुख-सौभाग्य बना रहता है। एकादशी का व्रत कोई भी कर सकता है। चाहे वह एक छोटा-सा बालक हो या वयस्क अथवा बुजुर्ग हर कोई जो घर का सदस्य है वो एकादशी व्रत कर सकता है। लेकिन इस व्रत को रखने के कुछ नियम है जिसका पालन करना चाहिए।
एकादशी व्रत के नियम
एकादशी का व्रत बहुत कठिन होता है। जिसे करने के लिए आपको पहले सूर्यास्त से लेकर दूसरे सूयास्त तक व्रत करना पड़ता है। एकादशी का व्रत कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से रख सकता है। एकादशी के एक दिन पहले मनुष्य को एकादशी व्रत का पालन करना होगा।
- एकादशी का व्रत घर का कोई सदस्य कर सकता है।
- जो व्यक्ति एकादशी का व्रत कर रहा है उसे एक दिन पहले मांस, मछली, प्याज और मसूर की दाल जैसे पदार्थ का सेवन नहीं कर सकता।
- रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
- एकादशी के दिन श्रद्धालु सूर्योदय से पहले उठकर अपनी दिनचर्या शुरू करनी चाहिए।
- एकादशी के दिन दातुन न करें। नींबू, जामुन और आम के पत्ते लेकर चबा लें और अपनी अंगुलियों से दांतो की सफाई कर सकते है। लेकिन ध्यान रहे, इस दिन पेड़ की पत्तियां तोडना भी वर्जित है। नीचे गिरी पत्तियों का सेवन करे।
- यदि यह संभव न हो, तो पानी से कुल्ला कर लें। उसके बाद स्नान करे, लेकिन साबुन लगाना भी वर्जित है।
- स्नान संपन्न करने के बाद आपको मंदिर जाना है और गीता का पाठ करना होता है आप चाहे तो किसी पंडित के द्वारा भी गीता का पाठ सुन सकते हैं।
- पाठ सुनने के पश्चात सच्चे मन से ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र जाप करें और भगवान विष्णु जी का स्मरण करें व प्रार्थना करे।
- एकादशी के दिन झाड़ू नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि इस चींटी मरने का भय रहता है।
- इस दिन बाल भी नहीं कटवाना चाहिए।
- इस दिन अधिक नहीं बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द निकल जाते है।
- एकादशी के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलगम, गोभी और पालक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
- केला, आम, अंगूर, बादाम और पिस्ता आदि का सेवन करना चाहिए।
- प्रत्येक वस्तु भगवन को भोग लगाकर तथा तुलसी में छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।
- एकादशी के ब्राह्मण को दान-दक्षणा देना चाहिए।
एकादशी व्रत के फायदे
एकादशी व्रत हिन्दुओ में सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जो हर महीने में दो बार आता है। चन्द्रमा के शुल्क पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में ग्यारहवें दिन आता है। यह व्रत रखने के लिए शुभ दिन माना जाता है। इससे आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से कई लाभ मिलते हैं।
- उपवास शरीर से विषाक्त पदार्थों और अशुद्धियों को निकालने में मदद करता है, जिसमे समग्र स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बढ़ावा मिलता है।
- एकादशी के दौरान खाए जाने वाले भोजन पाचन तंत्र के लिए आसान माना जाता है। जिससे उसे भारी भोजन से राहत मिलती है।
- उपवास रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने में मदद कर सकती है। जिससे शरीर रोगों से अधिक लड़ने में समक्ष होता है।
- उपवास के दौरान मानसिक व्याकुलता कम होने से फोकस और एकाग्रता में सुधार हो सकता है।
- उपवास मन को साफ करने पर आंतरिक शांति को बढ़ावा देने में मदद करता है, जिससे विचारों में अधिक स्पष्टता आती है।
- एकादशी व्रत को आत्मनिरीक्षण और दिव्य शक्ति से जुड़ने का समय माना जाता है।
- एकादशी का व्रत करने से मन की मनोकामना पूरी होती है-जैसे-संतान की प्राप्ति, धन-वैभव और मोक्ष प्राप्ति आदि।
- उपवास कैलोरी की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे वजन कम करने में मदद मिल सकती है।
एकादशी का व्रत कैसे रखें
एकादशी का व्रत रखने के लिए, अनाज, फल, दाल, नमक और मसालों का सेवन नहीं करना चाहिए। कुछ लोग प्याज, लहसुन और अंडे जैसे पर्दार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक समाप्त होता है। दशमी और एकादशी दोनों दिन लोगों को भोग-विलास से दूर पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, जैसे-सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। उसके बाद घर के मंदिर में दीप जलाएं।
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भगवन विष्णु को गंगाजल से अभिषेक करें, उसके बाद फूल और तुलसी अर्पित करें। भगवान की आरती करें और उसके बाद भोग लगाए। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करें।
एकादशी व्रत की सामग्री
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र चाहिए। पुष्प,पुष्पमाला,नारियल, सुपारी, अनार,आंवला, बेर, अन्य ऋतुफल, धूप, घी, पंचामृत बनाने के लिए कच्चा दूध,दही,घी,शहद और शक्कर चाहिए, चावल, तुलसी,गोबर,केले का पेड़, मिठाई भी चाहिए।
एकादशी व्रत का उद्यापन
एकादशी व्रत के दिन और उद्यापन पर ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पूजा छोटी या बड़ी क्यों न हो, इसे सभी व्रतियों को श्रद्धा के साथ करनी चाहिए। एकादशी व्रत का उद्यापन किसी आचार्य या पंडित के मार्ग में करनी चाहिए। उद्यापन में 12 माह की एकादशियों के निमित 12 ब्राह्मण पत्नियों सहित निमंत्रित करना चाहिए। उद्यापन पूजा में तांबे के कलश में चावल भरकर रखें। अष्टदल कमल बनाकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। पूजा के बाद हवन होता है। उसके बाद सभी को सभी ब्राह्मणों को फलाहारी भोजन कराने के बाद वस्र और दान दिया जाता है।
एकादशी व्रत से संबंधित प्रश्न
निर्जला एकादशी का व्रत अधिक उम्र की महिला और गंभीर बीमारी में व्रत नहीं करना चाहिए।
एकादशी का व्रत खोलने के बाद चावल जरूर ग्रहण करना चाहिए। ध्यान रखें कि व्रत अन्न खाकर नहीं खोलना चाहिए। उसके बाद आप मेवे, फल आदि खा सकते है।
आठ वर्ष की आयु से लेकर जीवन के अंत तक प्रत्येक मनुष्य को, चाहे वह किसी भी जाति, लिंग, वर्ग, विवाहित या अविवाहित आदि का हो, एकादशी और अन्य हरि वासर उपवास का पालन करना चाहिए।
इस दिन मांस, कांदा (प्याज), मसूर की दाल आदि का निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।