छठ पूजा एक हिन्दू त्यौहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड में मनाया जाता है। इस भक्त छठी मईया और सूर्य देवता की पूजा अर्चना कर और कठिन व्रत का पालन करते है। हिंदुओं के महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहारों में से एक माना जाने वाला छठ पूजा 4 दिनों तक चलता है। यह साल में दो बार चैत्र और कार्तिक महीने में मनाया जाता है। माना जाता है कि व्रत रखने से आपकी सारी मनोकामना पूरी होती है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है। लेकिन मुख्य रूप से छठ व्रत माताएं अपने संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना से रखती हैं। यह व्रत संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए खास माना जाता है। छठ पूजा से लेकर कुछ कथाएं है।
छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा की परंपरा हुई थी। जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने रावण पाप से मुक्त होने के लिए, उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि तब से लेकर आज तक छठ पर्व के दौरान ये परंपरा चली आ रही है।
छठ पूजा की शुरुआत
छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कर्ण बिहार के अंग प्रदेश के राजा थे, वह सूर्य और कुंती के पुत्र थे। कर्ण सूर्य देवता के परम भक्त थे और वह रोज पानी में कई घंटों तक खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
महाभारत काल में द्रोपती ने भी छठ व्रत रखा था। जब पांडव राज पाठ जुए में हार गए थे, तब द्रोपती में छठ व्रत रखा था। उनकी मनोकामना भी पूरी हुई थी और उन्हें वापस राजपाठ मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देवता और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
छठ की कथा क्या है
पुराणों के मुताबिक, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराई और यज्ञ आहुति के लिए बनाई खीर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को दी। बाद में मालिनी को पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। प्रियंवद दुखी हो गया। वह पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने की कोशिश की। उसी वक्त भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकट हुईं। राजा ने पूछा तुम कौन-उन्होंने कहा सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी हूं। उन्होंने राजा से कहा-राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो तो तुम्हें इस दुख से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद राजन ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। तभी से षष्ठी यानी छठी मैया की पूजा होती चली आ रही है।
छठ पूजा के नियम
- छठ पूजा के समय प्रसाद में लगने वाले सभी अनाजों की सफाई अच्छे से करना जरूरी है। इसे घर पर ही धोकर, कूटकर और पीसकर बनाया जाता है। इस दौरान चिड़िया अनाज को जूठा न करे, उसका भी विशेष ध्यान रखा जाता है। छठ के प्रसाद में काम आने वाला अनाज में गलती से भी पैर नहीं लगना चाहिए। ऐसा करने से छठी मईया नाराज हो सकती हैं।
- छठ का प्रसाद बनाते समय ध्यान रहे कि चूल्हा नया हो। चूल्हा ऐसा हो जिसे रोज लीपा जा सके। अगर आप गैस का प्रयोग करते हैं, तो नए स्टोव का प्रयोग करना चाहिए। जिसे हर साल केवल छठ के दिन ही निकाला जाता हो। छठ पूजा में पहले इस्तेमाल किए गए चूल्हे का दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता।
- पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का ही इस्तेमाल करना होता है। छठ पूजा के दौरान कभी स्टील या शीशे के बर्तन प्रयोग नहीं करना चाहिए। प्रसाद भी शुद्ध घी में बनाया जाता है। इसमें फलों का ही प्रयोग किया जाता है। ऐसे में इन बातों का व्रती को खास ख्याल रखना चाहिए कि स्टील और कांच के बर्तनों का प्रयोग न हो।
- छोटे बच्चों को पूजा का कोई सामान न छूने दें और जब तक पूजा नहीं हो जाती कोई प्रसाद न दें।
- व्रत रखने वाली महिलाएं चार दिन तक पलंग व चारपाई पर न सोये। जमीन पर कपड़ा बिछाकर सोए।
- छठ पर्व के दौरान व्रती समेत पूरे परिवार सात्विक भोजन ग्रहण करे।
- पूजा के किसी चीज को चुने से पहके हाथ साफ करें।
- ध्यान रहे सूर्य देवता को जिस बर्तन से अर्ध्य दे रही है। वह चांदी, स्टील, प्लास्टिक और गिलास नहीं होना चाहिए।
छठ पूजा की सामग्री
छठ पूजा की सामग्री में बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरियां, पानी वाला नारियल, दूध और जल के लिए एक गिलास, एक लोटा और थाली, चम्मच, 5 गन्ने पत्ते लगे हुए, शकरकंदी और सुथनी, पान और सुपारी, शरीफा, हल्दी, केला, नाशपाती, मूली और अदरक का हरा पौधा, सिंघाड़ा, मिठाई, बड़ा वाला मीठा डाभ नींबू, गुड़, गेँहू, चावल का आटा, चावल, ठेकुआ, सिंदूर, कलावा, दीपक, शहद, धूप, नई साड़ी, फूल मालाएं।
छठ पूजा में क्या-क्या करती है
- पहले दिन नहाय-खाय होता है, जिसमें व्रत रखने वाली महिलाएं पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करती हैं, सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं, घर की सफाई करती हैं। इस दिन खाने में केवल कद्दू की सब्जी (लौकी), चने की दाल और चावल का विशेष महत्व होता है।
- दूसरे दिन खरना होता है। खरना के दिन व्रतधारी पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के बाद प्रसाद बनाकर उपवास तोड़ते हैं।
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- प्रसाद के रूप में गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन किया जाता है। इसके बाद ही अगले 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू होता है।
- छठ के तीसरे दिन व्रतधारी शाम के समय में किसी नदी या जल के स्रोत में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस प्रक्रिया में पूरा परिवार और आसपास के लोग भी शामिल होते हैं। वे सभी सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
- छठ पूजा के अंतिम दिन में उगते सूर्य पहली किरण को अर्घ्य दिया जाता है। इस प्रक्रिया में भी पूरा परिवार शामिल होता है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतधारी अपना व्रत तोड़ते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।
बिहार में छठ पूजा क्यों मनाई जाती है
धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सबसे पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर सपन्न किया था। जिसके बाद महापर्व छठ की शुरुआत हुई। छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है। ये पर्व बिहार के साथ देश के अन्य राज्यों और विदेशों में भी बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इसलिए बिहार में छठ पूजा मनाई जाती है।
छठ पूजा से संबंध पूछे गए प्रश्न
छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति आस्था, समर्पण और सूर्य देव की कृपा की प्राप्ति है। इस पर्व में लोग सूर्यास्त और सूर्योदय की विशेष पूजा करते है।
सूर्य और छठी मैया के बीच भाई-बहन का संबंध है।
यह त्यौहार सामुदायिक भावना को और भी बढ़ावा देता है जब हज़ारों लोग प्रार्थना करने और विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए जलाशयों पर एकत्र होते हैं । यह सांप्रदायिक बंधन और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का समय है। छठ पूजा सूर्य देव की महिमा और पारिवारिक एकता, अच्छे स्वास्थ्य और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
छठ पूजा करने से भगवान सूर्य की कृपा होती है और साथ ही संतान से जुडी समस्या खत्म होती है।
छठ पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन और यश की प्राप्ति होती है। संतान की आयु और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
छठ माता भगवान शिव और पार्वती माता के बेटे कार्तिक की पत्नी है।