देवो के देव महादेव बहुत ही भोले माने जाते है। उनका नाम भी भोलेनाथ है। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए किसी भी तरह के खास विशेष पूजन की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि कहा जाता है कि वह तो भोले हैं और भक्त की मन से की गई क्षणिक मात्र की भक्ति से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा पाने चाहते है, तो उनकी यह कथा जरूर सुनें।
साहूकार की कहानी
एक बार की बात है। किसी नगर में साहूकार रहता था, लेकिन उसके गहन की कमी नहीं थी। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। इसी कारण वह दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव और पार्वती जी पूजा करता था। साहूकार की भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव को उसकी मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया। पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा कि-“हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।” लेकिन पारवती ने साहूकार भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा व्यक्त की। माता पार्वती के कहने पर शिवजी ने साहूकार को को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन उन्होंने बताया कि यह बालक 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
साहूकार का पुत्र शिक्षा के लिए काशी गया
साहूकार माता पार्वती और शिव जी की बात सुन रहे थे, इसलिए उन्हें इस बात की ख़ुशी थी और न ही दुःख। और पहले की तरह शिव की पूजा करता रहा। कुछ समय बाद साहूकार के पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब वह ग्याहरा साल का हुआ, तो उसे पड़ने के लिए काशी भेज दिया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ। तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणों को भोजन-दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी नगरी निकल पड़े।
साहूकार के पुत्र का विवाह कैसे हुआ
जब मामा-भांजा यज्ञ के बाद लौटे रहे थे, तो रास्ते में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था, लेकिन जिस राजकुमार से विवाह होने वाला था। वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए सोचा क्यों न उसने साहूकार के पुत्र को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद उसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊँगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया। साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात सही नहीं लगी। इसलिए उसने अवसर पाकर राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा-तुम्हरा विवाह मेरे साथ हुआ है, लेकिन जिस राजकुमार से आपका विवाह होना था। वह एक आंख से काना है। मैं तो पढ़ने के लिए कशी जा रहा हूँ। जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई। दूसरी और साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया।
साहूकार के पुत्र के प्राण निकले
जिस दिन साहूकार का लड़का बाहर साल का हुआ। उस दिन भी हवन था। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मृ तबियत ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर आराम कर लो। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप करना शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती माता ने भोलेनाथ से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। तब शिव जी मृत बालक के समीप गए, तो वह बोले यह वही साहूकार का बेटा है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था।
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अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव-आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के पुन: आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया।
साहूकार का पुत्र घर वापिस लौटा
शिक्षा पूरी करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर वापस चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया। इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात शिव ने सपने में साहूकार से आकर कहा-हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सोमवार व्रत में अन्न की मना होती है। इस दिन जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद भोलेनाथ को दूध, गंगाजल, शहद, घी, अक्षत व बेलपत्र आदि अर्पित करना चाहिए।
सोमवार व्रत में बैगन, पालक और गोभी नहीं खानी चाहिए। साथ ही बेसन से बनी कोई चीज़ नहीं खानी चाहिए।
सोमवार व्रत में क्रोध, काम, लोभ जैसे दर्गुणो से दूर रहे। शिव पूजा में इस दिन तुलसी, सिंदूर, हल्दी, शंख का उपयोग वर्जित माना गया है। इस दिन काले कपडे पहनने से बचना चाहिए।
ऐसे में पुजारी से सलाह लेनी चाहिए। शिवा व्रत उद्यापन के लिए कुछ लोग पूजा-पाठ कराते है, तो कुछ लोग दान-दक्षिणा करते है। सब अलग-अलग तरीके से करते है।